विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती कि पूजा 16 फरवरी को है। इस दिन मां वीणा वादनी का जन्म हुआ था। भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्री के रूप में माध माह के, शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को अवतरित हुई थी मां सरस्वती।
जानें पूजा की विधि। मां सरस्वती की जन्म कथा। ब्रह्मा की पुत्री होने के बाद मां सरस्वती की कैसे हुई शादी। मां सरस्वती के पुत्र का क्या था नाम। क्यों 100 वर्षों तक वन में छुपी रही मां सरस्वती। क्यों कटा ब्रह्मा जी का पांचवां सर। पूजा करने में कौन सी सामग्रियों की पड़ती है जरूरत। पूजा करने का शुभ मुहूर्त, और पूजा करने का अशुभ मुहूर्त, पंचांग व चौधड़िया मुहूर्त के अनुसार। जानें सभी जानकारियां विस्तार से ?
16 फरवरी को अहले सुबह 3:40 से पंचमी तिथि का आगमन हो जाएगा, जो कि अगले दिन 17 फरवरी को सुबह 5:20 बजे समाप्त होगा। उदया काल में पंचमी तिथि पड़ने के कारण वसंत पंचमी महोत्सव 16 फरवरी को विद्याधात्री मां सरस्वती की पूजा होगी। सरस्वती पूजा के दिन सूर्य वक्री होकर कुंभ राशि में और चंद्रमा मीन राशि में रहेगा। सूर्य उत्तरायण दिशा में और योग शुभ है तथा नक्षत्र रेवती रहेगा।
वसंत पंचमी से आती है प्राकृतिक में बदलाव
वसंत पंचमी के दिन से ही प्राकृतिक रूप में बदलाव महसूस होने लगता है। इसी दिन से पतझड़ का मौसम खत्म होकर हरियाली प्रारंभ हो जाता है। वसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है। भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छह ऋतुओं (वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में वसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है। पंचमी से वसंत ऋतु का आगमन हो जाता है, इसलिए यह ऋतु परिवर्तन का दिन भी है। इस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखरना शुरू हो जाता है। स्वयं श्री कृष्ण ने कहा है कि ऋतुओं में मैं वसंत हूं।' ऐसी मान्यता हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में भगवान श्रीविष्णु जी की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य की रचना की थी।
यह पूरा माह बहुत शांत एवं संतुलित होता है। वसंत ऋतु के दिन मुख्य पांच तत्व अर्थात जल, वायु, आकाश, अग्नि और धरती संतुलित अवस्था में होते हैं और इनका ऐसा व्यवहार प्राकृतिक को सुंदर एवं मनमोहक बनाता है। मसलन इन दिनों ना अधिक बारिश होती है, ना बहुत ठंड और ना ही गर्मी का मौसम होता है। इस दिन से मनमोहक और सुहानी ऋतु का आगमन हो जाता है। वसंत ऋतु में चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती है। पतझड़ खत्म हो जाता है और चहूओर हरियाली का साम्राज्य कायम हो जाता है।
मां सरस्वती के जन्म की पौराणिक कथा
ब्रह्मांड की संरचना का कार्य शुरू करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य को बनाया, लेकिन उसके मन में दुविधा थी उन्हें चारों तरफ सन्नाटा सा महसूस हो रहा था। तब उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़क कर एक देवी को जन्म दिया है जो उनकी मानस पुत्री कहलायी, जिसे हम सरस्वती देवी के रूप में जानते हैं। इस देवी का जन्म होने पर उनके एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक और तीसरे में माला थी। चौथे हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में खड़ी थी। उनके जन्म के बाद मां सरस्वती को वीणा वादन करने को कहा गया। तब देवी सरस्वती ने जैसे ही स्वर बिखेरा वैसे ही धरती में कंपन हुआ और मनुष्य को वाणी मिली और धरती की सन्नाटा खत्म हुई। धरती पर पनपे हर जीव, जंतु, वनस्पति और जल धार में एक आवाज शुरू हो गई और तब से चेतना का संचार होने लगा। इसलिए इस दिवस को सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा करने से मुश्किल से मुश्किल मनोकामना पूरी होती है। पौराणिक मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। इसलिए वसंत पंचमी में मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार और लेखक आदि मां सरस्वती की उपासना करते हैं। स्वरसाधक मां सरस्वती की उपासना कर उनसे स्वर प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। ब्रह्माजी के अनेक पुत्र और पुत्रियां हुई थी। सरस्वती देवी को शतरूपा, वाग्देवी, वागेश्वरी, शारदा, वाणी और भारती भी कहा जाता है।
ब्रह्माजी का क्यों कटा था सिर, मत्स्य पुराण के अनुसार
मत्स्य पुराण कथा के अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया। ब्रह्मा अपनी ही बनाई हुई रचना, सरवस्ती के प्रति आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी कूदृष्टि डाले रहते थे। ब्रह्मा की दृष्टि से बचने के लिए मां सरस्वती चारों दिशाओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं। इसलिए सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं लेकिन अपने पांचवें सिर से ब्रह्मा ने उन्हें आकाश में भी खोज निकाला। प्रजापति ब्रह्मा का अपने ही पुत्री के प्रति आकर्षित होना और उनके साथ संभोग करना अन्य सभी देवताओं के नजरों में अपराध था। सभी ने मिलकर पापों का सर्वनाश करने के लिए शिव से आग्रह किया कि ब्रह्मा ने अपनी पुत्री के लिए यौनाकांक्षाएं रखीं, जोकि एक बड़ा पाप है, ब्रह्मा को उनके किए का फल मिलना ही चाहिए। क्रोध में आकर शिव ने उनके पांचवें सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया था।
जाने शिव पुराण के अनुसार
शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा के सर्वप्रथम पांच सिर थे। लेकिन जब अपने पांचवें मुख से उन्होंने सरस्वतीजी, जोकि उनकी पुत्री थी, को उनके साथ संभोग करने के लिए कहा तो क्रोधावश सरस्वती ने उनसे कहा कि तुम्हारा यह मुंह हमेशा अपवित्र बातें ही करता है जिसकी वजह से आप भी विपरीत ही सोचते हैं। इसी घटना के बाद एक बार भगवान शिव, अपनी अर्धांगिनी पार्वती को ढूंढ़ते हुए ब्रह्मा के पास पहुंचे तो पांचवें सिर को छोड़कर उनके अन्य सभी मुखों ने उनका अभिवादन किया, जबकि पांचवें मुख ने अमंगल आवाजें निकालनी शुरू कर दी। इसी कारण वश क्रोध में आकर शिव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया था।
100 वर्षों तक छुपी रही वन में, हुआ पुत्र मनु
मां सरस्वती ने विशेष आग्रह करने पर ब्रह्मा जी से शादी की और श्रृष्टि की रचना में लग गई। पौराणिक कथा के अनुसार मां सरस्वती ने ब्रह्माजी के साथ 100 वर्षों तक जंगल में पति-पत्नी के रूप में छिप कर रही। ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती से सृष्टि की रचना में सहयोग करने का निवेदन किया। इसके बाद सरस्वती के गर्भ से स्वयंभु मनु को जन्म हुआ। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। यहीं से मानव जाति का श्रृजन शुरू हुआ।
पूजा सामग्रियों का नाम
चंदन, यज्ञोपवीत, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, कपड़ा, नारियल, रोली, सिंदूर, पान के पत्ते, पुष्पमाला, कमलगट्टा, सात तरह के अनाज, कुश, धुर्वा, पंचमेवा, कपूर, घी, दूध, दही, मिठाई, आम का मंजर, गंगाजल, गाय का गोबर, पीपल या तांबा का लोटा और मधु।
सरस्वती पूजा करने का अनेक विधियां
वसंत पंचमी को एक मौसमी त्यौहार के रूप में भिन्न-भिन्न प्रांतीय मान्यता के अनुसार मनाया जाता है। कई पौराणिक कथाओं के महत्व को ध्यान में रखते हुए भी इस त्यौहार को मनाते हैं। इस दिन सरस्वती मां की प्रतिमा की पूजा की जाती है। उन्हें कमल पुष्प और आम का मंजर अर्पित किए जाते हैं। इस दिन वाद्य यंत्रों और पुस्तकों की पूजा होती है।
सरस्वती पूजा के दिन पीले वस्त्र पहने जाते हैं। खेत खलिहान में भी हरियाली का मौसम रहता है। यह पूजा किसानों के लिए भी बहुत महत्व रखता है। इस समय खेतों में पीले सरसों के फूल लहराते रहते हैं। किसान भाई भी फसलों के आने की खुशी में यह त्यौहार मनाते हैं।
वसंत पंचमी के दिन अन्न दान, वस्त्र दान और विद्या सामग्रियों का दान करने वालों से मां सरस्वती खुश होती है। वसंत पंचमी पर गुजरात सूबे में गरबा करके मां सरस्वती की पूजा-अर्चना किया जाता है। यहां खासकर किसान भाई मनाते हैं।
पश्चिम बंगाल में भी इस उत्सव की धूम रहती है। यहां संगीत, कला और नृत्य को बहुत अधिक पूजा जाता है। इसलिए बसंत पंचमी के मौके पर बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं। जिसमें भजन, नृत्य आदि होते हैं।
वसंत पंचमी के दिन पवित्र स्थलों के दर्शन करने का महत्व रहता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व है। काशी, हरिद्वार और प्रयाग सहित अन्य जगहों पर गंगा स्नान करना काफी शुभ होता है। वसंत पंचमी के दिन कई स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता है। जहां पर देशभर के भक्तजन एकत्र होते हैं।
कामदेव और देवी रति की पुरानी कथा का भी महत्व बसंत पंचमी से जुड़ा हुआ है इसलिए इस दिन कई जगहों पर रासलीला उत्सव भी मनाया जाते हैं पतंगबाजी प्रथा पंजाब प्रांत से जुड़ी है वसंत पंचमी के दिन महाराजा रंजीत सिंह पतंग उत्सव का आयोजन करते थे। इस दिन बच्चे दिनभर रंग-बिरंगे पतंग उड़ाते हैं।
यह एक ऐसा पहला त्यौहार है, जिसे मुस्लिम इतिहास में भी मनाया जाने का उल्लेख मिलते हैं। अमीर खुसरो जो कि एक सूफी संत थे। उनकी रचनाओं में भी वसंत की झलक देखने को मिलती है। एतिहासिक प्रमाण के अनुसार वसंत को जामा औलिया की वसंत, ख्वाजा बख्तियार काकी का नाम से भी जाना जाता है। मुगल साम्राज्य में इसे सूफी धार्मिक स्थलों पर मनाया जाता था।
जानें पूजा करने का उचित समय पंचांग से
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:20 से लेकर 1:00 बज के 4 मिनट रहेगा।
पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
अब जाने पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त कौन सा समय है। विजया मुहूर्त दोपहर 2:30 से लेकर 3:18 तक रहेगा। उसी प्रकार गोधूली मुहूर्त शाम के 6:18 से लेकर 6:42 तक, संध्या मुहूर्त शाम 6:30 से लेकर 7:42 तक, रात का निशिता मुहूर्त रात 12:05 से लेकर 12:30 तक, ब्रह्म मुहूर्त 4:30 से लेकर 5:41 तक और प्रातः काल मुहूर्त 5:07 से लेकर 6:19 तक रहेगा इस दौरान पूजा करना काफी शुभ रहेगा।
अब जाने पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त सुबह 9:30 से लेकर 11:00 तक यमगण्ड काल मुहूर्त है। उसी प्रकार गुलिक मुहूर्त 12:30 से 2:00 तक, राहु काल मुहूर्त 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक, दुर्मुर्हुत मुहूर्त सुबह 8:34 से लेकर 9:42 तक और वज्य मुहूर्त 3:03 से लेकर शाम 4:50 तक रहे। इस दौरान पूजा करना वर्जित है।
चौघड़िया शुभ मुहूर्त, दिन
वसंत पंचमी के दिन अमृत योग का सुखद संयोग मिल रहा है। अमृत योग दिन के 11:00 बज के 59 मिनट से लेकर 1: 24 मिनट तक रहेगा। इस दौरान मां का पूजा करना काफी शुभ रहेगा। इसके अलावा चर मुहूर्त सुबह 9:07 से लेकर 10:33 तक, लाभ मुहूर्त 10:33 से लेकर 11:59 तक रहेगा। इस दौरान मां सरस्वती का पूजा करना शुभ और फलदाई है।
चौघड़िया अशुभ मुहूर्त, दिन
चौघड़िया मुहूर्त अनुसार सुबह 6:12 से लेकर 7:42 तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार उद्वेग मुहूर्त 7:42 से लेकर 9:07 तक, काल मुहूर्त दोपहर के 1:24 से लेकर 2:50 तक और शाम 4:16 से लेकर 5:42 तक एक बार फिर से रोग मुहूर्त का योग बन रहा है। इस दौरान पूजा करना वर्जित है।
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार रात को शुभ और अशुभ समय
चौघड़िया मुहूर्त अनुसार शाम 5:42 से लेकर 7:16 तक काल मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा करना वर्जित है। उसी प्रकार सुबह 7:16 से लेकर 8:50 तक लाभ मुहूर्त है, इस दौरान आप पूजा कर सकते हैं। उसी प्रकार सुबह 8:50 से लेकर 10:30 तक उद्वेग मुहूर्त के दौरान भी पूजा करना मना है जबकि 10:00 बज के 24 मिनट से लेकर 11:59 मिनट तक शुभ मुहूर्त है और रात के 11:59 से लेकर 1:33 तक अमृत मुहूर्त है। इस दौरान मां सरस्वती की पूजा और आराधना आप कर सकते है।