Jaya Ekadashi 23 February, प्रेत योनि से मिलेगी मुक्ति

  
23 फरवरी, 2021 दिन मंगलवार, माघ मास, शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। जया एकादशी करने वाले  मनुष्यों को ब्रह्म हत्या और गौ हत्या जैसे भयंकर पाप से मुक्ति मिलती है। साथ ही पिशाच और प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत को कैसे करें, व्रत करने का महत्व और व्रत करने से होने वाले फैयदे की बात‌ विस्तार से पद्म पुराण में वर्णन किया गया है।

जया एकादशी के दिन चंद्रमा मिथुन राशि में और सूर्य कुंभ राशि में
माघ मास, शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली जया एकादशी आद्रा नक्षत्र, करण बिष्ट, योग आयुष्मान और दिन मंगलवार है। इस दिन चंद्रमा मिथुन राशि में और सूर्य कुंभ राशि में, ऋतु वसंत है। उस दिन सूर्य उत्तरायण दिशा में रहेंगे। विक्रम संवत 2077 है। जया एकादशी के दिन ग्रहों की स्थिति ? सूर्य वक्री है। राशि कुंभ है और राशि का स्वामी शनि है। नक्षत्र शतभिषा है और नक्षत्र का स्वामी राहु है।


जया एकादशी की जाने पौराणिक कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान 26 एकादशी व्रत की कथा धर्मराज युधिष्ठिर और धनुर्धर अर्जुन को क्रमवार समझाऐ थे। जया एकादशी के संबंध में महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे, श्रीहरी आपने माघ मास के कृष्ण पक्ष के षट्तिला एकादशी के संबंध में विस्तार से वर्णन किए हैं। अब मुझे माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाला जया एकादशी के संबंध में विस्तार से वर्णन करें। एकादशी व्रत करने से मनुष्य को कौन सा फल मिलता है।
धर्मराज ने जया एकादशी के संबंध में पूछे प्रश्न

धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा कि हे, श्रीहरि आप मनुष्य के अंदर व्याप्त स्वदेज, अंडे, उद्धेज और जरायुज चारों प्रकार के उत्पन्न, पालन और नाश करने वाले हैं। अब आप कृपा करके माघ शुक्ल पक्ष एकादशी का वर्णन करें। इस एकादशी का क्या महत्व है ?  इस व्रत करने का क्या है विधि ? उचित समय क्या है ? और इसमें कौन से देवता का पूजन करने चाहिए।

गौहत्या, ब्रह्महत्या व पिशाच योनि से मिलती है मुक्ति

श्रीकृष्ण ने कहा हे, धर्मराज इस एकादशी का नाम जया एकादशी है। इस व्रत को करने से मनुष्य ब्रह्म हत्या और गौ हत्या जैसे महा पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है, तथा इसके प्रभाव से पिशाच और भूत आदि योनियों से मुक्त मिल जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुम्हें पद्म पुराण में वर्णित महिमा की एक कथा सुनाता हूं।

अप्सराओं व गंधर्व के साथ विहार करने गए थे इन्द्र

श्रीहरि ने पौराणिक कथाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देवराज इन्द्र स्वर्ग के राजा थे। सभी देवताओं के साथ वे सुख पूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक दिन यह अपने सभी अप्सराओं के साथ नंदन वन में विहार करने गए। वहां अप्सराएं नृत्य और गंधर्व गान कर रहे थे। उसी नृत्य गान में गंधर्व में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उनकी कन्या पुष्पावती और चित्रसेन तथा उसकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थी। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और माल्यवान भी उपस्थित थे। पुष्पावती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम वाण चलाने लगी। उसने अपने रूप, लावण्य और हाव-भाव से मल्लवान को अपने वश में कर लिया।

पुष्पवती ने इंद्र को किया नाराज

पुष्पवती अत्यंत सुंदर थी। वह इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए नृत्य गान प्रस्तुत करने लगी, परंतु मल्वायन पर मोहित हो जाने के कारण उसका चित्त गान में नहीं लग रहा था। उसके ठीक प्रकार से गान और नृत्य में मन नहीं लगने के कारण पुष्पावती और मल्लवान के प्रेम को देवराज इन्द्र समझ गए। 
इंद्र ने पिशाच योनि का दिया श्राप

इन्द्र क्रोधित होकर बोले, अरे मूर्ख तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। इसलिए तुम्हें धिक्कार है। मैं श्राप देता हूं तुम दोनों स्त्री और पुरुष के रूप में मृत्यु लोक जाकर पिशाच योनिधारण करों और अपने कर्मों का फल भोगों।
इंद्र का ऐसा श्राप सुनकर दोनों अत्यंत दुःखी हो गए और हिमालय पर्वत पर दुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस और स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा। वहां पर उन दोनों को महान दुःख हो रहा था उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी।

इन्द्र से श्राप से दोनों पहुंचे हिमालय पर्वत

हिमालय पर्वत होने के कारण यहां अत्यंत ठंड थी। उससे उनके रोंगटे खड़े रहते थे और ठंड में दांत कांपते रहते थे। एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी से कहा पिछले जन्म में हमने ऐसा कौन सा पाप किए थे जिससे हम को यह दुःखदाई पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से अच्छा तो नर्क का दुखदाई जीवन है। हमें किसी प्रकार का पाप नहीं करना है। इस प्रकार विचार करते हुए दोनों दिन बिताने लगे। 

अज्ञान वश दोनों के किया जया एकादशी व्रत
 
देव योग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नाम की एकादशी आई। उस दिन उन दोनों ने ना कुछ खाया और ना ही पानी पीएं। साथ ही ना कोई पाप ही किया। केवल फल फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और संध्या समय दुखी होकर पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय भगवान भास्कर अस्त हो रहे थे। उस रात को अत्यंत ठंड पड़ रही थी। इस कारण वे दोनों आपस में लिपटे हुए पड़े रहे। उस रात दोनों को नींद भी नहीं आई।
व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्ति मिली

श्री कृष्ण ने कहा हे, धर्मराज युधिष्ठिर जया एकादशी के उपवास और रातभर जागरण करने से दूसरे दिन सुबह होते ही उन दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। अति सुंदर गंधर्व और अप्सरा के रूप धारण कर सुंदर वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्ग लोक को प्रस्थान किया। देवता गण दोनों पर पुष्प की बारिश करने लगे। स्वर्ग लोक में जाकर दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। भगवान इंद्र ने दोनों को पहले जैसा रूप देखकर घोर आश्चर्य चकित हुए और पूछने लगे कि तुम दोनों ने अपनी पिशाच योनि से किस तरह  छुटकारा पा सके ? सही सही बताना।

इन्द्र ने दोनों को ईश्वर तुल्य माना

माल्यवान कहा कि हे, देवेंद्र भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी व्रत के प्रभाव से ही हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। इसके बाद इन्द्र ने कहा कि हे, माल्यवान भगवान श्रीहरि की कृपा और एकादशी व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई। बल्कि हम देवता गण के भी वंदनीय हो गए हो क्योंकि भगवान विष्णु और भोलेनाथ के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं। अतः तुम दोनों धन्य हो। अब आप पुष्पावती के साथ प्रेम पूर्वक जीवन व्यतीत करों।

जया एकादशी व्रत करने से हजार वर्षों तक स्वर्ग की प्राप्ति

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि युधिष्ठिर जया एकादशी व्रत करने से बुरी से बुरी योनि से मुक्ति मिल जाती है। जो मनुष्य जया एकादशी व्रत किया है उसे मानो सभी तरह के यज्ञ, जप, दान आदि कर लिया है। जो जातक जया एकादशी व्रत करता है, वह अवश्य ही हजार वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है। जया एकादशी व्रत को पूरे विधि विधान और निष्ठा से करनी चाहिए।

जया एकादशी व्रत करने का विधान

जया एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति जया एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। जया एकादशी  की रात सोना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदाई होता है। द्वादशी अर्थात पारन के दिन भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए।  अंत में स्वयं भोजन  कर उपवास खोलना चाहिए। 

अब जाने कौन मुहूर्त में करें पूजन

अभिजीत मुहूर्त दिन के 12:12 चलेगा 12:57 तक रहेगा

पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त दोपहर 2:29 से लेकर 3:14 तक विजया मुहूर्त के रूप में है। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त शाम 6:06 से लेकर 6:30 तक, संध्या मुहूर्त 6:17 से लेकर 7:32 तक, मध्य रात्रि का निशिता मुहूर्त 12:09 से लेकर 12:59 तक, ब्रह्मा 5:11 से लेकर 6:01तक और प्रातः मुहूर्त 5:36 से लेकर 6: 51 तक है। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।
पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार राहुकाल का आगमन दिन के 2:52 से लेकर शाम 4:18 तक रहेगा। उसी प्रकार यमधंत काल सुबह 9:04 से लेकर 10:30 तक और गुलिकाल 11:58 से लेकर 1:25 तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।

चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शुभ समय

चौघड़िया के अनुसार दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। सुबह 6:15 से लेकर 7:40 तक का लाभ मुहूर्त का संयोग रहेगा। अमृत मुहूर्त का आगमन सुबह 7:40 से लेकर 9:07 तक रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त 10:00 बज के 11:59 तक और चर मुहूर्त दोपहर के 2:50 से लेकर शाम 4:16 तक रहेगा। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।

रात्रि चौघड़िया शुभ मुहूर्त

रात्रि समय का चौघड़िया शुभ मुहूर्त रात 7:16 से लेकर 8:50 तक, रात 8:50 से लेकर रात 10:25 तक अमृत मुहूर्त और 10:25 से लेकर 11:59 तक चर मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान पूजा अर्चना करना जातकों के लिए लाभप्रद होगा।

चौघड़िया अशुभ मुहूर्त दिन का

चौघड़िया के अनुसार सुबह 9:07 से लेकर 10:35 तक काल मुहूर्त, 11:59 से लेकर 1:25 तक रोग मुहूर्त और 1:25 से लेकर 2:50 तक उद्वेग मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।

चौघड़िया अशुभ मुहूर्त रात का

चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शाम 5:42 से लेकर रात 7:16 तक उद्वेग मुहूर्त, मध्य रात की 11:59 से लेकर रात 1:30 तक रोग मुहूर्त और रात 1:30 से लेकर 3:07 तक काल मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना वर्जित है।





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