देवताओं की तेज से जन्मी मां दुर्गा महिषासुर का किया वध

मां शक्ति का जन्म देवताओं की तेज से हुई थी। इस कथा का मार्कंडेय पुराण में विस्तार से लिखा गया है। मां दुर्गा का जन्म कैसे हुआ किस तरह उन्होंने महिषासुर का वध किया और भगवान् इंद्र को फिर से इन्द्रासन पर आसीन किया। जाने विस्तार।
इंद्रासन पर बैठा महिषासुर, देवता हुए बेघर
मार्कंडेय पुराण के अनुसार पूर्व काल में देवताओं और असुरों के बीच पूरे 100 वर्षों तक भीषण संग्राम हुआ था। उसमें असुरों के स्वामी महिषासुर था और देवताओं का नायक इंद्र थे। युद्ध में देवताओं की सेना महाबली महिषासुर से हार गई। संपूर्ण देवताओं को जीतकर महिषासुर इन्द्र बन बैठा। इसके बाद देवताओं ने प्रजापति ब्रह्माजी को आगे करके उस स्थान पर गए जहां भगवान शंकर और विष्णु विराजमान थे। देवताओं ने महिषासुर के पराक्रम और अपनी पराजय का पूरा वृतांत उन दोनों देवताओं को विस्तार पूर्वक सुनाया। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चंद्रमा तथा अन्य देवताओं को भी अधिकार छीनकर स्वयं ही सबका अधिकारी बन बैठा । महिषासुर ने सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया। मनुष्य की भांति पृथ्वी पर विचरण करते फिर रहे थे। हम लोग आपके शरण में आए हैं। उसके वध का कोई उपाय सोचिए।
इस प्रकार देवताओं की वचन सुनकर भगवान विष्णु और शिव दैत्यों पर बड़ा क्रोध किया। अत्यंत कोप से भरे हुए श्रीविष्णु के मुख से एक महान तेज प्रकट हुआ। इसी प्रकार ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र तथा आदि अन्य देवताओं के शरीर से भी बड़ा भारी तेज निकला। वह सब मिलकर एक हो गया। देवताओं के महान तेज विशाल पर्वत सा जान पड़ा। संपूर्ण देवताओं के शरीर से प्रकट हुए तेज कि कहीं तुलना नहीं थी। एकत्रित होने पर वह एक नारी के रूप में परिणत हो गया और अपने प्रकाश से तीनों लोकों में व्याप्त जान पड़ा है।
शिव के तेज से मां भवानी की मुख हुआ प्रकट
नारी के रूप धरने के बाद मां को सभी देवताओं ने अपने अपने स्वरूप प्रदान किया। भगवान भोलेनाथ ने अपने तेज से देविका मुख प्रकट किया। यमराज के तेज से उसके सिर में बाल निकल आए। श्रीविष्णु भगवान के तेज से उसकी भुजाएं उत्पन्न हुई। चन्द्रमा के तेज से दोनों स्तनों का और इंद्र के तेज से मध्य भाग प्रगट हुआ। ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उनकी उंगलियां हुई। वासुओं की तेज से हाथों की उंगलियां और कुबेर के तेज से नासिका प्रकट हुई। उस देवी के दांत प्रजापति के तेज से और तीनों नेत्र अग्नि के तेज से प्रकट हुए। उसकी भौंहें संध्या के और कान वायु के तेज से उत्पन्न हुए थे। वरुण के तेज से कांधा और पिंडली तथा पृथ्वी के तेज से नितंब भाग प्रकट हुआ। इसी प्रकार अन्य देवताओं के तेज से भी उस कल्याणमयी देवी का अभिभार्व हुआ।
माता भवानी को देवताओं दे दिए विभिन्न अस्त्र व शास्त्र
समस्त देवताओं के तेज पुन से प्रकट हुई देवी को देखकर महिषासुर से सताए हुए देवता बहुत पसंद हुए। भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से त्रिशूल निकाल कर उन्हें दिया। विष्णु भगवान ने भी अपने चक्र से चक उत्पन्न करके भगवती को अर्पण किया। वरुण भी शंख भेंट किया। अग्नि ने धनुष तथा बाण से भरे हुए दो तरकस प्रदान किए। सहस्त्र नेत्रों वाले देवराज इंद्र ने अपने ब्रज से उत्पन्न करके ब्रज और एरावत हाथी से उतार कर एक घंटा भी प्रदान किया। यमराज ने काल दंड से दंड, वरुण ने पासा, प्रजापति ने स्फटिकाक्ष की माला तथा ब्रह्मा जी ने कमंडल भेंट किए। सूर्य ने देवी के समस्त रोम कूपों में अपनी किरणों का तेज भर दिया। काल ने उन्हें चमकती हुई ढाल और तलवार दी।
क्षीरसमुद्र में उज्जवल हार तथा कभी ना जीर्ण होने वाले दो दिव्य वस्त्र भेंट किए। साथ ही उन्होंने दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, उज्जवल अर्धचंद्र, सभी बाहुओं के लिए केयूर, दोनों चरणों के लिए निर्मल नुपूर, गले की सुंदर हंसुली और सब अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की बनी अंगूठियां भी दी। भगवान विश्वकर्मा ने तुम्हें अत्यंत निर्मल फरसा भेंट किया। साथ ही अनेक प्रकार के अस्त्र और अभेद्य कवच दिए। इसके अलावा मस्तक और वक्ष स्थल पर धारण करने के लिए कभी न कुम्हलाने वाले कमलों की मालाएं दी। जलधि ने उन्हें सुंदर कमल का फूल भेंट किया। हिमालय ने सवारी के लिए सिंह तथा भांति भांति के रत्न समर्पित किए। कुबेर ने मधु से भरा पान पत्र दिया तथा संपूर्ण नागों के राजा शेषनाग जो इस पृथ्वी को धारण करते हैं उन्होंने बहुमूल्य मणियों विभूषित नागहार भेंट दिया। इसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं ने भी आभूषण और वस्त्र देकर देवी का सम्मान किया।

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