पिंडदान और तर्पण करने की विधि

1 सितंबर २०२० से गया तीर्थ में पिंडदान करने की धार्मिक अनुष्ठान शुरू हो जाएगा। इस दौरान मृतक पितरों को पिंडदान और तर्पण कैसे किया जाए। साथ ही किस आसन पर बैठकर तर्पण और पिंडदान करने के अलावा जनेऊ पहनने की विधि, किस पात्र से तर्पण किया जाना चाहिए। सभी धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी यहां दी गई है। तर्पन कि कथा धार्मिक ग्रंथ नित्य कर्म पूजा प्रकाश से लिया गया है।
तर्पण करने के पूर्व स्नान कर शरीर को ना पोछें
तर्पण के पूर्व और बाद में नदी में स्नान करने के बाद देह को ना पोछा जाए। जल को यूं ही सूखने दिया जाए, तो अधिक अच्छा रहेगा। क्योंकि सिर से टपकने वाले जल को देवता, मुख भाग से टपकने वाले जल को पितर, बीच भाग से टपकने वाले जल को गंधर्व और नीचे से गिरने वाले जल को सभी जंतु पीते हैं।
गया धाम में पिंड पारने के पहले स्नान करने का विधान है। साथ ही शरीर के किसी भी सुखी वस्त्र से पोछना पूरी तरह निषेध है। वस्त्र पहन कर जो मनुष्य नदी में स्नान करता है उसे, उक्त गीले वस्तु को नीचे की ओर से निकालना चाहिए। जबकि घर में स्नान करने के बाद मनुष्य ऊपर की ओर से अपने वस्त्र को उतारना चाहिए। निचोड़ गए वस्त्र को कंधे पर रखना मना है।
गीले वस्तु को पूर्व दिशा से प्रारंभ कर पश्चिम की ओर या उत्तर दिशा से प्रारंभ कर दक्षिण की ओर फैलाना चाहिए। इसके विपरीत फैलाने पर वस्त्र अशुद्ध हो जाता है और उसे फिर से धोना पड़ता है। वस्त्र को जल में न निचोड़े। धोती पहन कर ही पिंडदान करें। धोती में पिछवा होना जरूरी है। पिंड दान करते समय धोती गमछा या चादर जरूर रखें।
पितृ तर्पण कैसे करें, करने की पूरी विधि
पितृ तर्पण करने के लिए मनुष्य को दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाएं। गमछे को भी दाहिने कंधे पर रखें। बाया घुटना जमीन पर लगा कर बैठे। पात्र में जल और काला तिल मिलाकर तर्पण करें। कुशों को बीच में मोड़ कर, उनकी जड़ और आगे का भाग को दाहिने हाथ में तर्जनी ऊंगली और अंगूठे के बीच में रखें। अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से अपने पितरों को अंजलि दे। प्रत्येक मंत्र पर तीन बार अंजलि देनी चाहिए।
अपने नाना और नानी सहित पुरखों को दे पिंड
पितृ तर्पण के बाद दूसरे गोत्र वाले अर्थात अपने ननिहाल के नाना नानी सहित अन्य पुरखों को तर्पण करना चाहिए। पितृ तर्पण की तरफ और उसी विधि से अपने नाना नानी को दर्पण करना चाहिए। नाना नानी सहित ननिहाल के पुरखों को तर्पण देने के बाद अपने पत्नी के मायके के मरे हुए मृतकों को भी पूरे विधि-विधान से तर्पण करना चाहिए। मृतक आत्मा के नाम और गोत्र के नाम लेकर मंत्रों के बीच तर्पण करना चाहिए।इस प्रकार सभी पितरों को पिंडदान करने के बाद गमछे की चार तह बनाकर पिंडदान किए समानों को इकट्ठा कर नदी जल में प्रवाहित कर देनी चाहिए।
तर्पण करने के लिए आसन और पात्र का चुनाव कैसे करें
तर्पण और पिंडदान करते समय शास्त्र सम्मत आसनों का चुनाव करना चाहिए। पिंडदान करने के लिए कुश से बने आसन, कंबल, मृग चर्म जन्म व्याघ्र चर्म और रेशम से बने आसन का उपयोग करने चाहिए। बांस, मिट्टी, पत्थर, पत्ते, गोबर, पलाश, पीपल और जिसमें लोहे की कील लगी हो ऐसे आसन का उपयोग कदापि नहीं करनी चाहिए। तर्पण और पूजा पाठ में उपयोग होने वाला पात्र सोना, चांदी, तांबा या कांस का बना होना चाहिए। मिट्टी और लोहे से बना हुआ पात्र का उपयोग तर्पण करते समय कदापि न करें।
तर्पण करने का विधि
तर्पण करते समय लोगों को गायत्री मंत्र के उच्चारण कर सबसे पहले शिखा बांधकर, तिलक लगाकर शुरुआत करना चाहिए। इसके बाद दाहिनी अनामिका उंगली के मध्य पोर में तीन कुशों और बाय अनामिका में तीन कुशों की पवित्री धारण कर ले। फिर हाथ में तीन कुशों को लेकर अक्षत और काला तिल पात्र के जल में डालकर मंत्रों के बीच तर्पण करनी चाहिए। इसके बाद पूरब दिशा की ओर मुख करके जनेऊ धारण कर दाहिने घुटना जमीन पर लगा कर बैठे और इसके बाद पिंडदान करें।
पिंड दान करने की तिथि
एक सितंबर से लेकर 17 सितंबर तक चलने वाले पिंडदान के दौरान कुश, चावल, धोती, गमछा और पात्र का उपयोग करने चाहिए। चावल से बने पिंड का उपयोग होता है।
पहला श्राद्ध (पूर्णिमा) 1 सितंबर, दूसरा श्राद्ध कर्म 2 सितंबर, तीसरा श्राद्ध कर्म 3 सितंबर, चौथा श्राद्ध कर्म 4 सितंबर, पांचवा श्राद्ध कर्म 5 सितंबर, छठा श्राद्ध कर्म 6 सितंबर, सांतवा श्राद्ध कर्म 7 सितंबर, आंठवा श्राद्ध कर्म 8 सितंबर,नवमा श्राद्ध कर्म 9 सितंबर, दसवां श्राद्ध कर्म 10 सितंबर, ग्यारहवां श्राद्ध कर्म 11 सितंबर, बारहवां श्राद्ध कर्म 12 सितंबर, तेरहवां श्राद्ध कर्म 13 सितंबर, चौदहवां श्राद्ध कर्म 14 सितंबर, पंद्रहवां श्राद्ध कर्म 15 सितंबर, सौलवां श्राद्ध कर्म 16 सितंबर, सत्रहवां श्राद्ध कर्म 17 सितंबर को अमावस्या के दिन होगा। 15 दिन के दौरान गया के विभिन्न जगहों पर पिंडदान किया जाता है। पिंडदान के लिए पांच दिन प्रमुख होता है।

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