जिउतिया 10 को, 31 घंटे की निर्जला व्रत रखेंगी व्रती

जिउतिया व्रत वंश की वृद्धि और संतान की दीर्घायु की कामना कर महिलाएं अश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती है। 24 घंटे की इस निर्जला व्रत इस बार 31 घंटे तक रखना पड़ेगा। कारण सप्तमी तिथि 9 सितंबर को रात 9:00 बज के 46 मिनट तक रहेगा। इसके बाद अष्टमी तिथि रात को ही आ जाने के कारण व्रतधारियों को रात 9:30 के बाद भोजन करना और पानी पीना वर्जित हो जाएगा।
जिउतिया व्रत करने का विधान
निर्जला जिउतिया व्रत इस बात अश्वनी कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 9 सितंबर दिन बुधवार को रात 9:00 बज के 46 मिनट से प्रारंभ होकर 10 सितंबर की रात 10:00 बज के 45 मिनट तक रहेगा। इसलिए नहाय-खाय 9 सितंबर को ही होगा। 9 सितंबर की रात 9:30 बजे तक व्रतधारी भोजन व जल खा और पी सकते हैं। इसके बाद उनका निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा, जो 31 घंटे का चलेगा। 10 सितंबर को पूजन के उपरांत रात भर व्रतधारियों को उपवास रखकर सूर्योदय के बाद पारन करना होगा।
जिउतिया व्रत रखने वाली महिलाएं सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें। इसके बाद चील और सियार की पूजा करनी चाहिए। मिट्टी के बने चील और सियार को पाकुड़ के डाल पर स्थापित कर पूजा करने का विधान है। नये वस्त्र पहनकर महिलाएं निर्जला व्रत रख शाम के समय पूजा करती है। पूजा के उपरांत कथा सुनती है। सुबह सूर्योदय के बाद महिलाएं फुलाए हुए बाजरे या जिंदा मछली को सबसे पहले निकलती है। इसके बाद भोजन करती है। 

नहाए खाए के दिन क्या खाएं व्रती महिलाएं
इस बार नहाए खाए 9 सितंबर दिन बुधवार को पढ़ रहा है। सुबह व्रती महिलाएं तालाब, नदी या घर में गंगाजल डालकर स्नान करें। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते हुए जिउतियां पर्व करने का संकल्प लें। इसके बाद नोनी का साग, मडुआ आटा से बनी रोटी, कंदा और सत्पुतिया झिंगी से बनी सब्जी खाती है। इस बार रात 9:30 बजे तक ही भोजन और पानी व्रती महिलाएं खा और पी सकती है। जीउतियां के दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा वृष राशि में रहेंगे। योग वज्र बन रहा है और नक्षत्र रोहिणी है।
अमृत योग में करें महिलाएं जिउतिवाहन भगवान की पूजा
10 सितंबर को अमृत योग का संजोग दिन के 2:07 से लेकर 3:40 तक रहेगा। महिलाएं इस अमृत योग में पूजा कर अपनी पुत्र की दीर्घायु की कामना करें उसी प्रकार शुभ योग सुबह 6:25 से लेकर 7:57 तक और शाम को 5:12 से लेकर 6:45 तक है। 11:02 से लेकर के 12:35 तक चर योगऔर लाभ योग 12:35 से लेकर 2:07 तक है। इस दौरान महिलाएं अपने श्री कृष्ण, चिल और सियार की पूजा कर सकते हैं।
इस समय भूल कर भी ना करें पूजा
10 सितंबर दिन गुरुवार को जिउतिया पर पड़ रहा है। उस दिन कुछ ऐसे समय है जिस समय राहुकाल, यमघंटा काल और गुली काल जैसे  अशुभ मुहूर्त चलते रहेंगे। ऐसे समय पर पूजा करना वर्जित है। यमघंटा काल सुबह 6:00 बज कर 12 मिनट से लेकर 7:00 बज के 45 मिनट तक, गुली काल 9:18 से लेकर 10:01 तक और राहु काल 1:57 से लेकर 3:30 तक रहेगा। इस दौरान पूजा करना सर्वथा वर्जित है।
जिउतिया पर्व की कथा
जिउतियां को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। इस कथा का प्रसंग महाभारत काल से जोड़ा जाता है। महाभारत युद्ध के बाद अश्वत्थामा पांडवों से काफी क्रोधित था, क्योंकि पांडवों ने झूठ बोलकर उनके पिता द्रोणाचार्य की हत्या कर दी थी। उसी का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ताक में रहता था। एक रात पांडव शिविर में घुस कर उसने देखा पांच व्यक्ति सोए हुए हैं। उसने पांचो भाई पांडव समझ कर उनकी हत्या कर दी। सुबह पता चला कि यह पांचों पुत्र द्रोपदी की है। इसके बाद अश्वत्थामा में निर्णय ले लिया कि जैसे द्रोपदी के पांचों पुत्रों की हत्या कर दी। उसी तरह उत्तरा के गर्भ में पलने वाले शिशु की भी हत्या कर देते हैं। और यही सोच कर उसने एक कठोर निर्णय लिया और अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र  चला दी। अस्त्र के सामने भगवान श्री कृष्ण की सुदर्शन चक्र भी काम नहीं आया। उत्तरा के गर्भ नष्ट होने के बाद श्री कृष्ण ने अपने तपोबल से एक शिशु का जन्म दिया। इसीलिए इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। श्री कृष्ण एक बच्चे का जान बचाई इसी परंपरा को निभाते हुए व्रती भगवान श्री कृष्ण की पूजा करती है।
चील और सियाज की कथा भी जिउतियां से जोड़कर देखा और सुना जाता है।
पुराने काल में एक जंगल में सियार और चील रहते थे। दोनों में गहरी दोस्ती थी। एक दूसरे के लिए जान भी दे देने को तैयार रहते थे। वह जो भी खाने का सामान लाते थे, आपस में बांट कर खाते थे। एक दिन चील किसी गांव में गया और उसने जिउतिया व्रत और कथा सुनी। महिलाओं को पूजा करते हुए देखकर चील ने निश्चित किया कि वह भी जिउतिया व्रत करेगा। उसने सियार से कहा कि हम दोनों को जिउतियां व्रत करनी चाहिए। व्रत करने से आने वाले जन्म में हम दोनों का कल्याण होगा। चील और सियार दोनों ने दिन भर निर्जला व्रत रखा, परंतु शाम को सियार को भूख बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने भोजन कर लिया। जब यह बात चील को पता चला तो उसने सियार पर काफी गुस्सा किया। अगले जन्म में सियार और चील दोनों सगी बहन के रूप में राजा के घर में जन्म लिया। बड़ी बहन सियार का विवाह राजा के पुत्र से हुआ जबकि छोटी बेटी चील की शादी मंत्री के पुत्र से हुआ। बड़ी बहन को जब भी बच्चा होता था, तो वह मर जाता था। जबकि छोटी बहन का हर बच्चा जीवित रहता था। छोटी बहन ने बड़ी बहन की दशा देखकर उसे जिउतियां पर्व करने का सुझाव दिया। जब बड़ी बहन ने जिउतियां पर्व की, तो उसके बच्चे बचने लगे।


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