चल दिए अपने गांव, कथा कोरोना काल की




कोरोनावायरस के मार से देश दहल रहा है। लाखों प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटने पर विवश है।

 बिहार और यूपी के प्रवासी अपने घर पहुंच चुके हैं। उनके दिलों में मलाल नहीं है कि हम अगर गांव जाएंगे तो क्या खाएंगे, कहां रहेंगे और कौन हमें रखेगा।

निश्चिंत दिखें प्रवासी

महानगर से लौटें प्रवासी मजदूर अपने गांव आकर काफी खुश दिखे। मलाल जरूर है कि जहां काम करते थे वहां के मालिकों ने विपत्ति में साथ नहीं दिया और भगवान भरोसे छोड़ दिया । श्रमिकों को या विश्वास था की आफत की इस घड़ी में जिस राज्य में रह रहे वहां की सरकार, जहां काम कर रहे थे,  उस कंपनी के मालिक उनको साथ देंगे , परंतु ऐसा नहीं हुआ । उन श्रमिकों को अपने हालात पर छोड़ दिया गया।

भगवान ने आंखें खोल दीं

बिहार के छपरा का रहने वाला राम खेलावन साव जिसकी उम्र 28 वर्ष है। वकौल राम खेलावन दिल्ली के एक कारखाने में काम करता था । उसने बताया कि सही समय पर भगवान ने आंखें खोल दी। हमें गुमान था कारखाना के मालिक और दिल्ली सरकार पर। विपत्ति में कोई काम नहीं आया।अब गांव में ही खेती करेंगे। दिल्ली कभी लौट कर नहीं आएंगे।

गांव में घर है

यूपी प्रतापगढ़ के रहने वाला मो फ़ैज़ काफी दुखी दिखा। मुंबई में काम करता था।संकट के समय कोई काम नहीं आया और पैदल ही अपनी पत्नी के साथ गांव लौटना पड़ा। फ़ैज़ ने कहा कि गांव में खेती है वहीं काम करेंगे।

ग़रीबी के कारण गया शहर

झारखंड के गुमला के रहने वाला सुनिल हेब्रम ने कहा कि गरीबी के कारण पंजाब में खेती का काम करने के लिए जाना पड़ा। अब गांव में ही मजुरी करेंगे परन्तु पंजाब नहीं जायेंगे।

दुःख की घड़ी में कोई काम नहीं आया

बिहार के गया जिला के सुदूर गांव में रहने वाला मनोज पासवान कोरोनावायरस काफी आहत दिखा। मनोज गुजरात के सूरत में कपड़े के मिल को काम करता था। उसका पूरा परिवार गांव में रहता है। पूरे परिवार उसकी नौकरी पर निर्भर था। 

मालिक ने इस विपत्ति काल में उसको उसी के हाल पर छोड़ दिया। मनोज ने बताया कि उसके पास इतना पैसा भी नहीं था कि गाड़ी रिजर्व कर अपने गांव आ सकता था। मनोज हिम्मत से काम लिया और अपनी साइकिल से गांव के लिए निकल पड़ा। रास्ते में अधिक कठिनाई आई। पर अपने परिवार से मिलने की इच्छा ने उसका हौसला बढ़ा है रखा। 

मानवता का दुहाई देने वाले इस देश के अमीर लोग जब गरीबों पर आफत पड़ती है तो अपना हाथ खींच लेते हैं। जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों यह कहावत इस स्टोरी को चरितार्थ करता है।

यह लेख कोरोनावायरस काल में लौटे लोगों की जुबानी के हिसाब से लिखा गया है। यह पूरी तरह मौलिक लेख है।

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