प्रगतिशील विचारक थे संत कबीर

संत कबीर दास की जयंती पर विशेष
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
महान संत कबीर दास जी एक प्रगतिशील विचारधारा के मालिक थे । वे धर्म के पाखंड पर अपनी कविता के माध्यम से गहरा आघात किए हैं। कबीर दास ने किसी भी धर्म के अंदर  व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर गहरा प्रहार अपने कविता के माध्यम से किए हैं। 
उनकी रचनाएं वर्तमान समय में लोगों को जीवन जीने का एक सीख देती है। अंधविश्वास से परे भगवान की भक्ति कैसे किया जाए, उन्होंने सरल भाषा में जनमानस को समझाने का काम किया है।
जीवन परिचय
संत कबीर दास जी का जन्म 1440 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित लहर ताल गांव में हुआ था। प्रख्यात समाज सुधारक कबीर दास जी की माता का नाम नीमा थी। पिता का नाम नीरू और पत्नी की नाम लोई थी। एक पुत्र जिसका नाम कमाल था जब की पुत्री का नाम कमली थी। उनकी मृत्यु 1578 में मगहर में हुई थी।

अंधविश्वास पर मात दी मृत्यु ने

सनातन धर्म में मान्यता है कि कोई भी जातक की मृत्यु अगर बनारस में हो जाता है तो सीधे शिव धाम को प्राप्त कर स्वर्ग लोक वासी हो जाता है। संत शिरोमणि श्री दास ने इस मिथक को तोड़ते हुए अपना भौतिक शरीर का त्याग मगहर में किया। मगहर के मामले में प्रचलित था कि अगर कोई भी व्यक्ति मगहर में मरता है तो उसे नरक मिलता है । इसी भ्रम को तोड़ने के लिए उन्होंने अपना शरीर मगहर में जाकर त्याग किया।

कबीर दास की रचनाएं और भाषा

संत कबीरदास की रचनाएं साक्षी, शरद और रमैनी है। उन्होंने अवधि्, पंजाबी, राजस्थानी, पंचमेल, खिचड़ी ,घुमक्कड़ी और खड़ी भाषाओं में कविता लिखी। उन्होंने समाज में फैली कुर्तियां ,कर्मकांड और अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की।
कंकर पत्थर जोड़ के मस्जिद लिया चुनाई,,

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