गुणनिधि के बाद राजा दम फिर बने कुबेर

 माता उमा के प्रति कुदृष्टि रखने के कारण कुबेर बने एक आंख वाले

शिव पुराण में वर्णित कथाओं में कुुुबेर की जन्म के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई है। कथा के अनुसार  गुणनिधि के जन्म के बाद राजा दम हुुए और अंत में कुबेर। गुण निधि शिव मंदिर में प्रसाद की चोरी के दौरान पकड़ा गया और उसे मृत्यु दंड मिला। अगले जन्म में गुुुुुुणनिधि राजा दम बना भगवान भोलेनाथ का अनंत भक्त हुआ। वह दीप यज्ञ के बदौलत अंत में भगवान शिव के परम शिष्य बना। माता पार्वती के कुदृष्टि के बाद भी भोलेनाथ ने क्षमा कर उसे धन के देवता कुबेर बना दिए।  शिव पुराण में इस कथा को विस्तार से बताया गया है। कुबेर का जन्म कैसे हुआ और वह भगवान भोलेनाथ के इतना निकट कैसे आ गया।

गुणनिधि से कैसे बना दम
पौराणिक काल में काम्पिल्य नगर में यज्ञदत्त नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण रहता था। वाह बड़ा ही सदाचारी ज्ञानी और धर्म परण व्यक्तित्व का धनी था। उसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम गुणनिधि रखा। वह बड़ा ही दुष्टकारी और जुआरी था। घर के लोग उससे परेशान रहते थे। अंत में पिता ने उसे घर से निकाल दिया। गुणनिधि दिन रात चलता रहा। थक हार कर एक शिव मंदिर के अहाते में पहुंचा जहां उसे कस के भूख लगी। मंदिर मे घूप अंधेरा छाया हुआ था। गुणनिधि अपने कपड़े उतार कर उजाला किया और प्रसाद
 चोरी करने लगा। उसी समय मंदिर के पुजारी जग गए और गुणनिधि पकड़ा गया। गुणनिधि को मंदिर में चोरी करने के कारण मृत्युदंड दिया गया। मृत्युदंड पाने के बाद जब वह यमपुरी पहुंचा तो उसे लेने के लिए शिवगण आ गए। उसने चोरी के दौरान जो उसने अपने कपड़े जलाए थे वह दीपदान के समान हुआ। इसलिए 
शिवगण उसे शिवपुरी लेकर चले गए। भोले की नगरी पहुंचकर माता पार्वती और भोलेनाथ को बड़ी सेवा की।
कलिंग राज्य में जन्मा दम

कालांतर में गुणनिधि का जन्म कलिंग राज्य में राजा अरिंदम के पुत्र के रूप में हुआ और उसका नाम दम पड़ा। दम बड़ा ही प्रतापी राजा था और अनंत शिव भक्त था। उसने अपने राज्य में बड़ी संख्या में शिवालय का निर्माण करा और आदेश दिया कि प्रत्येक दिन शिवालय में दीपदान किया जाए। अखंड ज्योत जलाने का भी राजा दम ने आदेश दिया। दम के राज्य में दीपदान अनिवार्य हो गया, जो व्यक्ति दीपदान नहीं करता वह विरोधी कहलाता और दंड का अधिकारी बनता था। शिव पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार जब दम छोटा था तो अपने दोस्तों के साथ शिव का खेल खेलता था और शिव भजन गाया करता था। उसकी लगन ने उसे बड़ा प्रतापी शिव भक्ति बना दिया।



विश्रवा के पुत्र बन कुबेर ने की कठिन तपस्या
शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्य से विश्रवा का जन्म हुआ। और विश्रवा के पुत्र के रूप में वैश्रवण अर्थात कुबेर का जन्म हुआ। उन्होंने पूर्वकाल में अत्यंत कठोर तपस्या के द्वारा त्रिनेत्र धारी महादेव की आराधना करके विश्वकर्मा की बनाई हुई अलकापुरी का उपभोग किया। जब वाह कल्प व्यतीत हो गया और मेघवाहन कल्प आरंभ हुआ उस समय वह यज्ञदत्त का पुत्र जो दीपदान करके वाला था, कुबेर के रूप में अत्यन्त कठिन तपस्या करने लगा। दीपदान मात्र से मिलने वाली शिव भक्ति के प्रभाव को जानकर हुआ। काशिकापूरी गया। वाह 11 रूद्रों को देव घोषित करके, अनंत भक्ति एवं स्नेह से संपन्न होकर व शिव के ध्यान में मग्न हो गया। 10,000 वर्षों तक तपस्या की। इसके बाद मां उमा के साथ भगवान विश्वनाथ कुबेर के पास गए। भोलेनाथ ने कहा हम वर देने के लिए तैयार हैं तुम अपना मनोरथ बताओ। भोलेनाथ का रूप देखकर कुबेर की आंखें चौंधिया गई। उसने भोलेनाथ से बोला मेरे नेत्रों को दृष्टि शक्ति दीजिए जिसके फल स्वरूप आपका दर्शन हो सके। यही मेरे लिए सबसे बड़ा वर है। कुबेर की बात सुनकर देवाधिदेव ने अपनी हथेली से उसका स्पर्स करके उन्हें देखने की शक्ति प्रदान की।

मां उमा की क्रोध ने ली एक आंख
नेत्रदान मिलने के बाद यज्ञदत्त के पुत्र ने मां उमा की अद्भुत रूप को आंखें फाड़-फाड़
 कर देखने लगा। उसने अपने जीवन काल में इतनी अनुपम सुंदर स्त्री नहीं देखी थी। वाह मन ही मन सोचने लगा भोलेनाथ के समीप यह सुंदरी कौन है। इसमें ऐसा कौन सा तप किया जो मेरे 
 से भी बड़ी हो गयी। ब्राम्हण कुमार उमा का नाम जपने लगा। क्रुर दृष्टि से देखने के कारण मां उमा कुपित हो गई। वामा के अवलोकन से उसकी वायीं आंख फूट गई । इसके बाद माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा कि यह दुष्ट तपस्वी जो बार-बार मेरी ओर देखकर पता नहीं क्या बकबक कर रहा है। आप मेरी तपस्या के तेज को प्रकट कीजिए। देवी की बात सुनकर भगवान शिव हंसते हुए कहा कि यह तुम्हारा ही पुत्र है या तुम्हें कुदृष्टि से नहीं देख रहा। अपितु यह तुम्हारी तप संपत्ति का वर्णन कर रहा है। इसके बाद भोलेनाथ ने कहा हम तुम्हारी तपस्या से संतुष्ट होकर तुम्हें वर देता हूं। तुम निधि के स्वामी बनो , तुम यक्षों, किन्नरों और राजाओं के राजा होकर पुण्य जनों के पालक बनो और सबके लिए धन के दाता बनो। मेरे साथ तुम्हारी सदा मैत्री बनी रहेगी। तुम्हारी प्रीति बढ़ाने के लिए मैं अलकापुरी के पास रहूंगा। अलकापुरी कैलाश पर्वत पर स्थित है। माता ने कहा वत्स भगवान शिव में तुम्हारी बराबर निर्मल भक्ति बनी रहे। तुम्हारी वायीं आंख तो फूट गई है। इसलिए एक ही नेत्र से युक्त रहो और धन की बारिश करते रहो।





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