ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न और राशि में अंतर होता है। इसे अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। जातक की जन्म कुंडली के प्रथम भाव में जिस राशि का अंक होगा उससे जातक का लग्न कहा जाएगा तथा जिस भाव में चंद्रमा स्थित होगी उसे जातक का राशि कहा जाएगा।
लग्न और राशि का मिलान
किसी भी जातक के जन्म कुंडली में द्वादश भाव होते हैं । जातक के जन्म के समय राशि आकाश मंडल में दिखाई दे रही हीती है। उसी को लग्न मान कर कुंडली के प्रथम भाव मैं स्थापित किया जाता है। शेष राशियों को क्रम अनुसार उससे आगे के भाव में स्थापित किया जाता है । उदाहरण के लिए यदि किसी जातक का जन्म आकाश मंडल में सिंह राशि के दिग्दर्शन में हुआ है, तो सिंह राशि के सूचक अंक 5 को जन्म कुंडली में प्रथम भाव में लिखा जाएगा और कहा जाएगा की जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ है । उसी समय चंद्रमा यदि सिंह राशि में भ्रमण कर रहा होगा तो चंद्रमा को भी कुंडली के प्रथम भाव अर्थात लग्न वाले खाने में ही लिखा जाएगा और कहा जाएगा की जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ है। और उसे सिंह राशि माना जायेगा।
ग्रहों के जातक के जीवन पर प्रभाव
सामान्य दृष्टि संबंध, पारस्परिक संबंध तथा स्थान संबंध के कारण ग्रह अपने गुण, कर्म व स्वभाव आदि का एक दूसरे से मिलकर जातक के जीवन पर प्रभाव डालते हैं। तात्पर्य यह है कि ऐसे संबंध से एक ग्रह का स्वभाव दूसरे ग्रह में सम्मिलित हो जाता है। ऐसी स्थिति में यदि दोनों ग्रह परस्पर मित्र हुए तो अपना विशेष प्रभाव प्रदर्शित करेंगे । यदि शत्रु हुए तो एक दूसरे पर विपरीत प्रभाव डालेंगे और यदि सम हुए तो संयुक्त सामान्य प्रभाव जातकों के जीवन पर पड़ेगा।
Sural
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