कैसे होती है भारतीय खेती ?
खेती में नक्षत्र का क्या है प्रभाव ?
नक्षत्रों के दौरान होने वाली बारिश से खेती पर कैसे पड़ता है प्रभाव ?
कौन से नक्षत्र में कौन सी खेती के होते हैं काम ? जानें संपूर्ण जानकारी।
साल में कितने होते हैं नक्षत्र, जानें
खेती के हैं कौन-कौन से नक्षत्र
हिंदुस्तान एक कृषि प्रधान देश है। यहां के 70% जनसंख्या कृषि कार्य पर निर्भर है।
भारतीय समाज में खेती महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हम लोगों को बताना चाहते हैं कि हमारे पूर्वज खेती का ही कार्य करते थे। बशर्ते हम शहर में आ गए हैं। हमारी डीएनए में खेती समाया हुआ है। हम जानें खेती का कुछ महत्वपूर्ण पहलू।
पौराणिक काल से ही खेती का काम नक्षत्रों के हिसाब से किया जाता था। वह आज भी कायम है।
कौन से नक्षत्र में धान का बिचड़ा बोया जाता है और कौन से नक्षत्र में उसे पुनः कबार (उखाड़) कर खेतों में रोपा जाता है। यह सब नक्षत्र के समय सीमा पर निर्भर करता है। भृगु संहिता में 28 नक्षत्रों का नाम वर्णित है। भृगु संहिता के अनुसार नक्षत्र का अपना एक महत्व है । सभी नक्षत्र 14 दिनों का होता है जबकि हस्त नक्षत्र 16 दिनों का होता है।
13 नक्षत्रों के बीच होती है धान की खेती
धान की खेती का शुभारंभ रोहिणी नक्षत्र से होती है। रोहिणी, मृगशिरा और आद्रा नक्षत्र में धान की बिछड़े की बुनाई की जाती है। इन तीन नक्षत्रों में सबसे श्रेष्ठ नक्षत्र रोहिण है। वैसे किसान जो सिर्फ वर्षा ऋतु पर निर्भर रहकर खेती करते हैं वे लोग मृगशिरा या आद्रा में बिछड़े की बुनाई करते हैं । वैसे किसान जिसके पास पंप सेट या नहर की सुविधा है। वे लोग बिछड़े की की बुनाई रोहिणी नक्षत्र में करते हैं। देहाती एक कहावत है अगला खेती आगे आगे पिछला खेती भाग्य जोगे।
30 दिनों के बाद होती है धान की बुवाई
30 दिनों के बाद जब पिछड़ा तैयार हो जाता है, तो किसान उसे उखाड़ कर दूसरे खेत में रोप देते हैं ,जो किसान रोहिणी नक्षत्र में खेतों में बिछड़े की बुवाई किए थे वैसे किसान पुनर्वसु नक्षत्र में धान की रोपाई शुरू कर देते हैं । जबकि मृगशिरा के किसान अश्लेषा और आद्रा के किसान मघा नक्षत्र में धान की रोपाई करते हैं ।
सर्वविदित है कि धान कि फसल की तैयारी 3 माह के अंदर हो जाती है। किसान 3 माह के बाद धान की कटाई शुरू कर देते हैं। आधुनिक युग में 45 दिन में भी धान की उपज होती है।
धान की खेती के लिए 7 नक्षत्र महत्त्वपूर्ण
धान की खेती के लिए पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्र, स्वाति, विशाखा और अनुराधा नक्षत्र महत्वपूर्ण है। धान की खेती में पानी की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। कहा जाता है कि इन सातों नक्षत्र के बीच धान के पौधे के नीचे जल जमाव होना जरूरी है। धान की खेती में बीज और खाद तो महत्वपूर्ण है ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पानी की होती है। पानी की अधिकता ही धान के पौधे को तंदुरुस्त रखता है और धान के दाना पुष्ट होता है।
हस्त नक्षत्र सबसे महत्वपूर्ण
हस्त नक्षत्र को हथिया नक्षत्र भी कहा जाता है यह नक्षत्र 16 दिनों का होता है। इसके 4 दिन लोहा, 4 दिन पीतल 4 दिन चांदी और 4 दिन सोना कहलाता है। कहने का मतलब है की हथिया नक्षत्र के अंतिम चरण में अगर बारिश होती है तो धान की उपज सोने की तरह मूल्यवान हो जाती है। हथिया नक्षत्र में किसानों के लिए बारिश होना बहुत ही जरूरी है । अगर हथिया नक्षत्र में बारिश नहीं हुई तो धान कि मर जाने की संभावना बढ़ जाती है।
स्वाति नक्षत्र में शीत का महत्त्व
स्वाति नक्षत्र धान की अंतिम चरणों का नक्षत्र है इस नक्षत्र में बारिश की जगह आसमान से गिरने वाली शीत की जरूरत पड़ती है। कहा जाता है कि धान को मजबूत और पुष्ट बनाने में शीत महत्वपूर्ण कारक है।,