अलौकिक शक्ति के स्वामी थे गुरु शुक्राचार्य

दानवों के गुरु और भगवान शिव के परम भक्त गुरु कृपाचार्य तीनो लोक में अमृत प्रदान करने वाले परम गुरु है।

 देवताओं के आंखों में खटकने वाले शुक्राचार्य के परम भक्त दानव थे।

 दानव राजाओं को सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना उनका काम था। दानवों के प्रतापी राजा गुरु शुक्राचार्य को गुरु और अभिभावक के रूप में मानते थे।


गुरु शुक्राचार्य इतनी जिद्दी थे कि किसी को भी अपने सामने कुछ समझते नहीं थे। उनमें मृत व्यक्ति को जिंदा करने की शक्ति थे। वह सिर्फ भोलेनाथ को अपना आराध्य देव मानते थे।

गुरु शुक्राचार्य के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी राजा बली ने भगवान विष्णु को तीन डेग धरती देने का वचन दे दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि धरती लोक को छोड़कर राजा बलि को पाताल लोक का राजा बनना पड़ा।


शुक्राचार्य ने राजा बलि को मना किया था कि यह साधु के भेष में आया और कोई नहीं है बल्कि भगवान विष्णु। परंतु गुरु शुक्राचार्य के लाख समझाने पर भी राजा बलि नहीं माना। अंत में शुक्राचार्य जल का कमंडल में अपने आप को समाहित कर लिए और कमंडल से निकलने वाले छेद को बंद कर दिए।

 जब राजा बलि ने कमंडल से जल निकालकर साधु वेश में बने विष्णु को संकल्प करने को सोचा, तो कमंडल से जल नहीं आ रहा था।

 भगवान विष्णु ने गुरु शुक्राचार्य की चालाकी को समझ गए और उन्होंने कमंडल में बने छेद को साफ कर रहे थे दूसरी ओर गुरु शुक्राचार्य कमंडल के छेद से देख रहे थे। भगवान विष्णु ने छेद खोलने के दौरान उनकी एक आंख को फोड़ दिया। दर्द से  कहारते हुए शुक्राचार्य कमंडल से बाहर आ गए हैं।

 शुक्राचार्य के लाख मना करने पर भी राजा बलि नहीं माना और तीन डेग में भगवान विष्णु तीनों लोक नाप दिया और अंत में सिर पर पैर रख दिया।


यह लेख धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। उसी से प्रसंग लिया गया है। यह लेखक कैसा लगा। हमारे ईमेल पर जरूर भेजिएगा अपनी प्रतिक्रिया।

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