बट सावित्री पूजा का विधान सनातन धर्म में सर्वाधिक है।इसका सीधा असर नारी की अस्मिता पर है।
नारी की चरित्र और नैतिक स्वरुप को दर्शाता है।
बट सावित्री पूजा महिलाओं की अखंड सौभाग्य से जुड़ी जुड़ी हुई है। महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए इस व्रत को बड़े निष्ठा से संपन्न करती है। निर्जला व्रत नारियों की पहचान बन चुकी है। कथा पौराणिक है। किंतु आज भी भारतीय नारियों के आदर्श का प्रतीक है। कथा के संबंध में कहा जाता है कि सावित्री नाम की धर्मनिष्ठ महिला जिसे पता था उसका पति की आयु मात्र 1 साल है।
फिर भी उसे अपने नारी और सतीत्व पर यकीन था। उसमें यमराज से भी लड़न कि शक्ति थी। घटना के दिन पति और पत्नी दोनों जंगल में लकड़ी काटने गए थे। सत्यवान के पिता राजा थे, परंतु नियति ने उन्हें आंधा और गरीब बना दिया। सत्यवान लकड़ी काटने के उपरांत उसने सावित्री से कहा। सर में दर्द हो रही है । सावित्री कुछ समझ पाती उसी बीच उसके पति के शरीर से प्राण निकल चुके थे। थोड़ी देर में सावित्री ने देखी एक दिव्य व्यक्ति पति की आत्मा को ले जाने के लिए आए हैं। उसने सत्यवान की आत्मा को लेकर चलने लगे।
उसके पीछे पीछे सावित्री भी चलने लगी। यमराज ने कहा पुत्री कुछ मांग लो और लौट जाओ। सावित्री ने अपने नेत्र हीन सास ससुर की आंखें और खोया हुआ विरासत मांग। लिया इसके बाद भी वह पीछा नहीं छोड़ी। तो यमराज ने कहां की पुत्री स्वस्थ शरीर स्वर्ग लोक कोई नहीं जाता है।
इसलिए तुम लौट जाओ। विधि का विधान है पति की इतना ही आयु बची थी। मुझे ले जाना मेरा मजबूरी है। सावित्री ने कहा कि मुझे पुत्रवती होने का वरदान दे। यमराजराज ने दान दे दिया फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या है।