इस कोरोनावायरस काल में हर व्यक्ति दुःखी है।हम बताते हैं अपनी दुखभरी कहानी। लॉक डॉन शुरू हो गया था। हम फस गए थे धनबाद में, जिसे झारखंड के काला हीरा भी कहा जाता है।
धनबाद से 200 किलोमीटर दूर मेरा गांव है, जो गया जिला में पड़ता है। गांव में मेरी बूढ़ी मां पत्नी और दो बच्चे हैं। घर में एक गाय भी है।
मैं बैचेन था।
एक दिन की देशव्यापी बंदी के बाद दूसरे दिन से प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन की घोषणा कर दी। लॉकडाउन क्या होता है इसका परिणाम कैसा होता है। यह मेरे लिए पहला अनुभव था। उसी दौरान पता चला कि बिहार जाने वाली तमाम बसें और ट्रेन बंद है। अर्थात मैं बुरी तरह फंस गया। गांव में मां, बच्चे और पत्नी व्याकुल थे। फोन पर बात होती थी परंतु ना आने की लाचारी से गांव वाले और हम दोनों दुखी थे। हम धनबाद मात्र चार दिनों के लिए गए थे, परंतु अब दो महीने होने को था। गांव में टीवी के माध्यम से कोरोनावायरस के संबंध में जानकारी मां और पत्नी को हो रही थी। घातक बीमारी होने के कारण सभी लोग चिंतित थे।
समाजिक दूरी का पता चला
लॉक डाउन का समय जैसे-जैसे बढ़ रहा था मेरी बेचैनी और परेशानी उसी प्रकार बढ़ते जा रहे थे। घर में गाय जो दूध देती थी। वहीं सबसे बड़ी समस्या बन गई । घर में वैसा कोई नहीं था जो गाय की सेवा कर सके और दूध निकाल सके। दूसरे लोगों पर निर्भर रहना पड़ता था। मां की एक ही प्रश्न रहता था कब आओगे। दूसरी ओर मैं चाहकर भी नहीं जा सकता था। मैं झारखंड में था जबकि मेरा गांव बिहार में था। इस प्रकार दो राज्यों का मामला बन गया था। मुझे रात में मां और पत्नी की याद आती थी। बच्चों की याद में आंखें भर आते थे। मैं सोचता था कहां आकर फस गया हूं मैं। एक बात और थी कि मुझे खाना बनाने की चिंता नहीं था, क्योंकि रिश्तेदार के यहां खाना मिल जाता था। समाजिक दूरी क्या होती है। इसकी जानकारी मुझे बाजार जाने पर दिखा। हर दुकान के आगे पांच पांच फीट की दूरी पर एक गोल घेरा बनाया हुआ था । उसी घेरा में खड़े होकर
खरीददारी करनी थी। मार्क्स लगाना जरूरी था। यह भी मेरे लिए नया अनुभव था । पहले हम गर्मी के दिनों में अपने गमछे से मुंह ढक्कते थे परंतु पहली बार मुंह पर मार्क्स लगाना पड़ा।
फोन बना जीवन का आधार
लोक डॉन के दौरान फोन जीवन का आधार बन गया था। दिन भर घर में पड़े रहने के दौरान फोन पर ही समय बिताना पड़ता था। वैसे घर में टीवी था परंतु फोन अधिक उपयोगी रहा। इसीलिए कि जब भी दिल घबराने लगता, तो फोन से बात करके ऐसा लगता था कि अपने मां, पत्नी और बच्चे से मिल मिल गया हूं। वीडियोकॉन से भी रूबरू बात हो जाती थी। मैं सोचता रहता था कि अगर फोन नहीं होता तो जीवन निरस होता और परिवार वालों से बात भी नहीं हो पाता। कम से कम मुलाकात तो नहीं हो रही थी परंतु बात तो हो रही थी। इससे जीने का एक आधार मिल गया था।
कर्फ्यू पास बना घर पहुंचा
लगभग 2 महीने रहने के बाद ऐसा संयोग बना कि मुझे घर जाने का एक सुनहरा अवसर मिल गया। मेरा एक रिश्तेदार जो औरंगाबाद जिले के रहने वाले थे । उनके घर में किसी शख्स गंभीर रूप से बीमार पड़ गया और उन्हें तत्काल औरंगाबाद जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि मैं कल अकेले औरंगाबाद जा रहा हूं । आप चल सकते हैं तो चले, रास्ते में आपका गांव छोड़ दूंगा। मैंने उन्हें हां कहा और उन्होंने मेरा भी कफ्यू पास बना दिए। भगवान का शुक्र है हम ठीक-ठाक से अपने घर पहुंच गए। घर पहुंचने के बाद ऐसा महसूस हुआ मानो काला पानी से लौटकर गांव आए हैं। परिवार के सभी सदस्य खुश है सबसे ज्यादा खुश बच्चे हो रही थी।