कोरोनावायरस की मार से कराह रहे हैं नगरवासी। मजबूरी में जीने को विवश है शहर के लोग। शहर के लोग पिछले 3 महीना से घर में बंद है, और डर डर के जी रहे हैं। भूख, प्यास और नौकरी यह तीनों समस्या हैरान परेशान किए हुए है। बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। अभिभावक नौकरी या बिजनेस करने नहीं जा रहे हैं। महिलाएं घर पर है। बड़े बुजुर्ग काफी डरे हुए हैं। डॉक्टरों का मानना है कि सबसे ज्यादा परेशानी बड़े बुजुर्गों को होगी। कोरोना वायरस वैसे लोगों को ज्यादा तंग करता है जिसकी प्रतिरोधक क्षमता कम है। बुजुर्गों में बहुत से बीमारियों के चलते प्रतिरोधक क्षमता काफी कम रहता है। इसलिए ऐसे लोगों को इस बीमारी की चपेट में आने का ज्यादा डर रहता है।
कोरोनावायरस ने बदली जीवन शैली
कोरोना और लॉकडाउन ने जीने का तरीका बदल कर रख दिया है। पहले लोग सुबह की तैयारी उठने के साथ सैर सपाटा के साथ करते थे। इसके बाद चाय की दुकान पर बैठकर गप्पे मारते और न्यूज़पेपर पढ़ते थे। इसके बाद घर आते थे स्नान आदि कर ऑफिस या अपने काम पर चले जाते थे। जब से कोरोनावायरस आया है, जीवन चर्चा ही बदल कर रख दिया है। दिन भर मेहनत करने के बाद जब शाम को घर आते थे, तो परिवार के लोगों के साथ बैठकर नाश्ता करते हैं और गप्पे माते थे। अब सब कुछ बदल गया है न लोगों से मिलना न किसी के घर जाना, एकांत में रहना ही नियति हो गई है।
बंद हो गया शहर
कोरोनावायरस का आतंक ऐसा छाया कि पूरे शहर में सन्नाटा छा गया। देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो शहर एक बिरान स्थल बन गया है। जिस सड़कों पर चलने का जगह नहीं मिलता था वहां सन्नाटा छाया हुआ है। बाजार जहां चलने में भी दिक्कत होती थी वही ऐसा दिख रहा है मानो यहां कोई आता ही नहीं है। सब्जी बाजार, मछली बाजार जहां तिल रखने का जगह नहीं मिलता था वही ना दुकान है ना ग्राहक है। चारों ओर सिर्फ सन्नाटा ही सन्नाटा है। प्राकृतिक की मार कितनी बेरहम होती है यह चारों ओर देखने को मिल रहा है। जिस व्यक्ति को होटल का खाना खाए बिना या कहें चाय पकौड़ा, दही फावड़े के बिना जीवन चलता ही नहीं था ऐसे लोग भी घर के खाना खाकर संतुष्ट है। मोहल्ले में गोलगप्पे वाला, फेरीवाला, कपड़ा वाला और बर्तन बेचने वालों की आवाज गुंजती रहती थी। वह आवाज सुने कई महीने गुजर गए। कार की भोपू, मोटरसाइकिल की पी-पी, साइकिल की टन-टन सुने हुए कई दिन गुजर ग ना कोई भिख मांगत और ना कोई साधु संत ही द्वार पर आ रहे हैं। ऐसा लगता है पूरा शहर ही कर्फ्यू में बदल गया है। इतना सन्नाटा जीवन में पहली बार देखने को मिला है।
महफिल हुआ वीरान
शाम के समय शहर के विभिन्न हिस्सों में लगने वाले महफिल भी वीरान पड़ गयी है। शराब की दुकान और उसके आसपास चहल पहल रहती थी। शाम ढलने के साथ लोगों का हुजूम शराब की दुकान के इर्द गिर्द दिखने लगते थे। शराब की बोतलों के साथ अपने यार दोस्तों के बीच बैठते थे। जाम लड़ाते और देश विदेश की चर्चाएं करते हैं। ऐसे जगहों पर भी अब सन्नाटा पसरा हुआ है। ढूंढने पर भी कोई नहीं मिलता है । हां चौक चौराहे पर गश्ती दल की पुलिस जरूर दिख जाते हैं । कभी काल सन्नाटे को चीरते हुए एंबुलेंस का सायरन सुनाई पड़ती है। घर में आए तो घर में सन्नाटा बाहर जाए तो पुलिस का डंडा। समझ में नहीं आता किया क्या जाए। कोरोना वायरस जानलेवा तो तब बनेगा जब हम पॉजिटिव होंगे, परंतु अभी जीवन की इस मोड़ पर जहां चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है। ऐसी स्थिति में पॉजिटिव न होते हुए भी अपने आप को मरा हुआ समझना पड़ता है। हालात दिन प्रतिदिन बढ़ते जाना है।
मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि
हाल के दिनों में देखने को मिल रहा है कि कोरोनावायरस मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है । शहर का अधिकांश इलाका इस बीमारी के चपेट में आ गया है । थोड़ी राहत यह है कि इस बीमारी की चपेट में वैसे ही लोग आए हैं जो शहर से बाहर रहते थे और कोरोनावायरस काल में लौटकर शहर आए हैं।
अधिकांश लोग तो शहर आने के बाद अपने घर न जाकर सीधे अस्पताल में जाकर भर्ती हो गए थे। इस कारण आम लोगों के बीच यह बीमारी काफी कम संख्या में फैली हैं।
कब मिलेगा निजात
कोरोनावायरस से कब मिलेगा निजात यह प्रश्न शहरवासियों के मन में कौंध रहा है। घर में बैठे-बैठे शरीर में दर्द होने लगा है। दोस्तों से मिलने की इच्छा प्रबंध हो रही है। और काम पर लौटने की भी इच्छा है। एक वह जमाना था जब काम पर नहीं जाने का बहाना ढूंढते थे और आज बिना बहाने का ही घर पर बैठे रहना पड़ रहा है। ऐसा महसूस होता है, जैसे घर काटने को दौड़ रहा है। बस एक ही विनती है प्रभु जल्द से जल्द इस वायरस का टीका निकल जाए जिससे खास बनी जिंदगी आम हो जाए।