धर्म ही सनातन मार्ग है-कृष्ण



सनातन धर्म का मतलब है,जो हमेशा से है ,जो हमेशा रहेगा, जिसका कोई अंत नही है और जिसका कभी आरंम्भ नही हुआ है वही सनातन धर्म है। और सत्य के रूप में हमारा धर्म ही सनातन है। 

बुद्ध के पहले बौद्ध धर्म (मत) नही था। जैन मुनि से पहले जैन धर्म नही था।यीशु के पहले ईसाई धर्म नही था। मुहम्मद से पहले इस्लाम धर्म नही था। गुरूगोविंद से पहले सिख्ख धर्म नही था।

ऐसे ही ब्रह्मांड अर्थात सृष्टि के आरंम्भ से लेकर वर्तमान समय तक अनेक धर्म हुए। जिनमें कई विलुप्त हो गये । तथा कुछ आज भी अस्तित्व में है। केवल सनातन धर्म ही सदा से है। ब्रह्मांड के आरंम्भ से है और भविष्य में रहेगा।

भगवान कृष्ण की गीता उपदेश कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहले नही था। इस प्रकार कृष्ण भक्ति सनातन नही है।

श्री राम की रामायण तथा रामचरितमानस भी श्री राम जन्म से पहले नही था,अर्थात राम भक्ति भी सनातन नही है।

लक्ष्मी माता भी,  यदि प्रचलित सत्य कथाओ के अनुसर जाने तो  समुद्र मंथन से पहले नही था । अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नही है।

शक्ति और गणेश यह दोनो एक पद है। और सनातन धर्म में पदो की पूजन भी सनातन नही।

सनातन धर्म अनादी है इसे समझने के लिए हमें भागवत गीता पर प्रकाश डालना होगा और अध्ययन करना होगा। भगवान भागवत गीता में विस्तार से बताया है कि धर्म क्या है धर्म पर आस्था कैसी आती है। धर्म पर कैसे चलें। अधर्मी होने पर क्या क्या कष्ट होता है।

सनातन का अर्थ  नितांत अर्थात नित्य। भगवान और भक्त के बीच नितांत संबंध ही सतातन धर्म है। सनातन धर्म में तीन तरह की श्रद्धा और भक्त होते है। प्रथम सकाम भक्ति, द्वितीय निष्काम और तृतीय प्रेम भक्ति है। 

पार्वती पुत्र गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नही था,तो गणपति पूजन भी सनातन नही है।

शिवपुराण के अनुसार-शिव ने विष्णु व ब्रम्हा को बनाया तो विष्णु भक्ति व ब्रम्हा भक्ति भी सनातन नही।

विष्णु पुराण के अनुसार- विष्णु ने शिव और ब्रम्हा को बनाया तो शिव भक्ति और ब्रम्हा भक्ति सनातन नही।

ब्रम्ह पुराण के अनुसार-ब्रम्हा ने विष्णु और शिव को बनाया तो विष्णु भकित और शिव भक्ति भी सनातन नही।

देवी भगवती महा पुराण के अनुसार-देवी ने ही ब्रम्हा, विष्णु,और शिव का निर्माण किया। तीनो देवता  भक्ति सनातन नही हुए।

सकाम भक्ति में भक्त भगवान से कुछ चाहत रखकर उनकी आराधना करता है। निष्काम भक्ति में भक्त बगैर कुछ चाहत, बगैर कुछ इच्छा मन में लिए भक्ति करता है, लेकिन प्रेम भक्ति करनेवाले भक्त सर्वोत्तम होते हैं जो भगवान की पूजा ही नहीं अपितु प्रेम करते हैं, उनसे सेवा नहीं लेते, अपना सर्वस्व देकर उनकी सेवा करते हैं, यह ब्रजवासियों की भक्ति है। इसी भक्ति को देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का बुद्ध के रूप में फिर से अवतरण हुआ।

भगवान श्री कृष्ण ने कुरूक्षेत्र में अर्जुन को ज्ञान देते हुए कहा है कि अर्जुन धर्म पर चलने वाले लोग सदा विजय होते हैं । हालांकि कुछ काल तक उन्हें कष्ट झेलना पड़ता है । धर्म हमें सदमार्ग पर चलाने की प्रेरणा देती है और धर्म ही धीरज है । धीरज रखने वाले लोग ही धर्म का अनुसरण कर सकते हैं।

पांडव धर्म का अनुसरण करने के कारण कष्ट झेले । उन्हें लाक्षागृह की वेदना झेलनी पड़ी। 12 वर्षों का वनवास 1 वर्ष अज्ञातवास झेलना पड़ा , इतना ही नहीं भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण का विधान भी पांडवों को झेलना पड़ा। इतनी विपरीत आने के बाद भी पांडवों ने धर्म नहीं छोड़ा । धर्म के रास्ते पर चलते रहे।

दूसरी और कौरव अधर्म पर चलते हुए अल्पकाल तक सुख तो भोगा परन्तु अंत में अपने कुल नष्ट कर, मृत्यु को वरण किया।

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